आज फ़िर मैंने
आज फ़िर मैंने
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आज फिर मैने वही कर बैठा
न करना था जो वही कर बैठा।।
वाकिफ़ था आदत से उनकी अच्छी तरह
एतबार आज फिर उन्हीं से कर बैठा ।।
दो दिन की जिंदगी है प्यार से जी लेते
पैगाम दोस्ती की दुश्मन को दे बैठा ।।
हाथ में खंजर को छिपाते देखा भी था
फिर भी उन्हीं के तरफ पीठ कर बैठा।।
निशाँ आज भी है दर्द नहीं मगर
एक बेईमान बेअदब से यारी कर बैठा ।।
यार को कैसे भला प्यार नहीं करते
उसकी ग़द्दारी को खुद्दारी मान बैठा।।