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Baman Chandra Dixit

Abstract

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Baman Chandra Dixit

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समझदारी समझदारों की

समझदारी समझदारों की

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समझदारों की टोली है ये

समझते क्या हैं ये जाने

मेरी समझ है कहांतक

समझ पाते क्या, वो जाने।।

अपनी समझ के हिसाब से

समझाते फिरते हैं जो

उनकी समझ है कितना

वो जाने या फिर ख़ुदा जाने।।

ठेस पहुंचाते जो दूसरों को

बेवजह गुरुर के खातिर

कितना आहत होता है वो

वो जाने ये क्या जाने।।

आसानी से टूट जाता

कांच की तरह दिल भी

दिखता नहीं दिल की घाव

देखता जो, वो क्या जाने।।

अनमोल है ये प्रेम धन

पलता दिल के अंदर

स्वच्छ मन सत् चिंतन रख

बाकी की रब जाने ।।

सत्कर्म सदाचार सद्बुद्धि

सच्चे दिल का उपज

हीन भाव से ग्रस्त चित्त जो

प्रीत स्रोत वो क्या जाने!!

समझ सब को एक समान

ऊंच नीच भेद भूल,

समझदार बन जा बामन

वरना तेरी तू जाने ।।



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