बोलने को बहुत मगर
बोलने को बहुत मगर
बोलने को बहुत मगर जुबाँ साथ न देता
ये जमाना ऐसे है के बोलने नहीं देता।।
कर गुजरने की चाहत कायम है भी मगर
सातीरी साथियों की करने नहीँ देता।।
जिनके खातिर ख़ता करना कुबूल किया
उन्हीं की ख़फा ख़याल खिलने नहीँ देता।।
और रोने को जी नहीं करता आजकल
आदत हो जाने के बाद दर्द भी नहीं होता।।
दिल की दहक ले कि धड़कनों को पता है
लापता जामाना मगर ख़ुद को पता होता।।