मेरा हक़ मुझे चाहिए
मेरा हक़ मुझे चाहिए
कोई भीख नहीं मांगता
मेरा हक़ मुझे चाहिए,
उगाता अनाज ख़ुद
तेरा खैरात नहीं चाहिए।
कर्म ही धर्म है मेरा
काम मुझे चाहिए,
करता काम जो उसका
सही दाम मुझे चाहिए।
बहुत हो चुका अब तेरा
चुनावी रेवड़ी का खेल,
नीति बना प्रगति की
राजनीति नहीं चाहिए।
बना सकते तो हम
बिगाड़ भी सकते हैं,
सजाड़ सकते तो हम
उजाड़ भी सकते हैं।
ठान लिए हैं जो हम
अब करके भी दिखाएंगे,
इनकीलाबी हैं हम
इन्किलाब हमें चाहिए।
ठेके की नौकरी में
पेट नहीं भरता,
हमारे हिस्से से कोई
जैव अपना भरता।
सत्ता के लिए भत्ता का
खेल अब छोड़,
काबिल युबाओं को
नौकरी पक्की चाहिए।
जात नहीं जानते हम
प्रांत नहीं जानते,
धर्म के नाम तेरा ये
पाखंड नहीं मानते।
काम से आराम हमें
आराम से करने दें,
राम हमें चाहिए और
काम भी हमें चाहिए।