कवि की कविता
कवि की कविता
कविता यूँ बनती नहीं
सृजन उसकी हो जाती
भावनाओंकी शक्ल में
बातें सबक ह जाती
कविता यूँबनती नहीं
सृजन उसकीहो जाती
भावनाओं की शक्ल में
बातें सबकह जाती
दर्द, दुख अन्याय की बातें
जब अच्छीनहीं लगती
व्यथा का इज़हार
कविता के छंदों में हो जाती
कोई पढे ना पढे इसको
कलम सब लिख जातीं
भावनाओं की शक्ल में
बातें सबकह जाती
प्रेम की परिकल्पना की
चिंतन हम यहाँ करते
अपने प्रेमरस गंगा में
डुबकियाँलगाते रहते
नौ रसों की परिधियों में
सदा यहघूमती रहती
भावनाओंकी शक्ल में
बातें सबकह जाती
जबअसहिष्णुता हमारी
कमर को कष्ट देती
मंहगाईयां सर चढ़ के
जब तांडव मचाती
तभी कविताद्रवित होकर
नयनों सेआँसू बहाती
भावनाओंकी शक्ल में
बातें सबकह जाती
जब राजाप्रजा की सुध का संज्ञान लेना छोड़ दे
जब उनलोगों के सपनों को साकारकरना छोड़ दे
तो कविता के ही क्रंदनसे जनता रो पड़ती
भावनाओं की शक्ल में बातें सब कह जाती
कविता यूँ बनती नहीं
सृजन उसका हो जाता
भावनाओं की शक्ल में
बातें सबकह जाती।