नज़र नज़र का फ़र्क
नज़र नज़र का फ़र्क
कोई सागर में नमक देखता है
मैं नमक में सागर देखता हूँ
कोई अंगार से राख रचता है
मैं राख़ में अंगार रखता हूँ ।।
सुनो कहने से सुना होता अगर
वो भी मन का कहा होता
जिह्वे गूंगे बनाकर बोलते हो
उन गूंगों में आवाज देखता हूँ।।
घुंघरू बांधकर अपने पांव में
नचनियां बने फिरते जो तुम
तुम पांव में घुंघरू दिखाते हो
मैं घुंघरू में पांव देखता हूँ।।
झुके हुए उन्हें देख कर तुम
सोचते हो उनको झुका दिया
झुकने में देखते लाचारी तुम
विचार तहज़ीब मैं देखता हूँ।।
ख़ामोश कर कुछ आवाजों को
मत सोचो आवाज को दबा दिया
तुम माचिस में तिल्ली रखते हो
मैं तिल्ली में चिंगारी रखता हूँ।।