Baman Chandra Dixit

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4.5  

Baman Chandra Dixit

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बड़ी किल्लत यहां

बड़ी किल्लत यहां

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बड़ी किल्लत यहां तहज़ीब तजुर्बों की

जिल्लत ज्यादती पे जाँ बुज़ुर्गों की।।


बूढ़े हुए के नहीं सब कुछ छिन जाता

बेगाना-पन गैरों के जैसे अपनों की।।


अहोदे छीन जाते जबरन जब तब

आहते अलग हो जाते बेचारों की।।


नज़रें चुभे जब दिल को शूल जैसा

जरूरत होती कहां औजारों की।।


माना जमाना बहुत बदल गया मगर

बलि चढ़ जाते बुजुर्ग बदलावों की।।


खुद ही खुद को बचाना होगा बामन

किसे पड़ी है यहाँ बूढ़े बुज़ुर्गों की ।।



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