दिल में अगर ठान ली
दिल में अगर ठान ली
पेड़ों को मांगा शीतल साया
पेड़ों ने इनकार कर दी,
नदी को मांगा स्वच्छ निर्मल जल
नदिया ने मुँह मोड़ ली।
थप्पड़ जड़ कर गर्म झोंके ने
आंख तर्रार कर बोला
बहुत कर चुके मनमानी अब
हमने मोर्चा खोल ली।
नहीं सहेंगे अत्याचार और
नहीं रहेंगे चुप,
जवाब करारा देंगे जरूर
दिल में हम ने ठान ली।
पेड़ नहीं तो साया कहां से
बोलो हे महाज्ञानी
काट काट कर जंगल सारा
साफ तो तूने कर ली!
दूषित जल कारखानों की
नदियों में छोड़ दिया
कहाँ मिलेगा शुद्ध पेय जल
खुद ही तो अनर्थ कर ली।
पीने का छोड़ नहाने लायक
पानी को नहीं छोड़ा,
जल की रानी जल में तड़पती
ऐसी हालत कर दी।।
अब तो रुके ठहर भी जाओ
सुधारो खुद ही खुद को
वरना प्रलय होगा प्रबल
गर वक्त ने करवट ले ली
जल जंगल और जमीं बचाओ
बचेगा सारा संसार
बना सकते हो बिगड़ी को भी
दिल में अगर ठान ली।
