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Goldi Mishra

Drama Tragedy

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Goldi Mishra

Drama Tragedy

दीप से रौशन

दीप से रौशन

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यूं ही दिन बीता,

बस झलकियां थी समीप और दिन रेत सा फिसला,

भोर एक झिलमिल तरंग से भरी थी,

मैं उठते ही घर की साज सज्जा में लग गई थी,

चुनरी धानी ओढ़ एक राग में रंग सी गई,

खास बनी दीवाली जब रिश्तों की मिठास घुल गई,


पूरा शहर मानो उत्सव के नाम हो गया था,

हर कोना उमंग की लहर में डूबा था आज कोई कण छूटा ना था,

एक सैर पर बाज़ार की निकली,

सिक्के और मोलभाव की तुकबंदी दिखी,

एक छोर पर दिखी तिनका भर दीवाली,

घरौंदे, दीप, और ईश्वर प्रतिमाह को बेचती मृणमयी मैंने थी देखी,


काश वो सब बिक जाए जो पसारा था,

उस छोर पर मैंने दीप बेचती मृणमयी को ज्योति से वंचित पाया था,

बेमोल ईश्वर को आज मोल के तराजू में खड़ा पाया,

एक पलड़े पर आस्था दुसरे पलड़े पर सिक्कों को पाया,

पाठ,मंत्रोच्चारण, ने पूरक बन अनुष्ठान को पूर्ण किया,

पहला दीप गणपति और मीनाक्षी के चरणों मे

 रख दिया,


रंगो में सनी ये बेला रीत और रिवाज़ समेट लाई थी,

एक साथ प्रज्वलित हुई थी गलियां और धीमे धीमे लौ दीप की बुझ रही थी,

रंग उमड़े बेसुध और सम्पूर्ण आकाश में उत्साह की धुंध थी,

ये रजनी रागनी में सरा बोर थी,

मैं बस याद,और स्मृति पिरो रहीं थी,

दीवाली मन में बाकी थी पर चौखट पर बीत चुकी थी।



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