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DR ARUN KUMAR SHASTRI

Abstract

4.5  

DR ARUN KUMAR SHASTRI

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डूब ही जाता अगर तू न आता

डूब ही जाता अगर तू न आता

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तू न आता डूब ही जाता अगर तू न आता

राह मिलती कहाँ अगर तू रास्ता न दिखाता 

कौन देता सदायें मुझको 

हाथ मेरा मैं किसको थमाता डूब ही जाता

अगर तू न आता एक भी आसरा था कहाँ 

था अकेला निपट और ये बैरी जहाँ डूब ही जाता अगर तू न आता

ज्ञान का ज्ञ भी न सीख पाता 

कलम टूटी मैं कैसे बनाता डूब ही जाता अगर तू न आता

हैं हजारों खामियाँ इस चमन में 

काज बिगड़े संवार कौन पाता डूब ही जाता अगर तू न आता

नाव कमजोर है औ पतवार भी तो नहीं है 

पार सागर के कोई कैसे हो पाता डूब ही जाता अगर तू न आता

दे सहारा ओ मालिक मुझे अपना समझ कर 

भीड का तन्त्र हर पल है मुझको डराता

 डूब ही जाता अगर तू न आता.


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