साँवली सी लड़की
साँवली सी लड़की
चिड़ियों के साथ उठ कर
जानवरों को चारा देती
आंगन में बुहारी फेरती
बर्तनों को चमकाती
रसोई की सुगंध से
घर महकाती
बालों में कंघी उलझाये
भैया के जूते में पाॅलिस करती
पापा का चश्मा मोबाइल
ए.टी. एम. कार्ड उनकी
जेब में डालती
माँ के नाश्ते के साथ दवाइयाँ रखती
फटी कमीज में आस्था के टाँकें लगाती
यूनीफाम में सजी
सीने से बस्ता चिपकाये
टूटी चप्पल किनारे रख नंगे पैर दौड़ती
स्कूल की घंटी से एक पल पहले
प्रार्थना की लाइन में खड़ी
ठिगनी सी
संकल्प की पक्की
फौलादी मन वाली
म्ंजिल पर मंजिल तय करती
बैंक के प्रबंधक की कुर्सी पर बैठी
झुकी आँखों से
फटाफट अभिलेख जाँचती
किसी गुस्से से बल खाते
बूढ़े की तल्खी का
मुस्कुरा कर
उत्तर देती लड़की
आँखों की राह मेरे दिल में उतर जाती है
बड़ी प्यारी लगती है
वह साँवली सी लड़की
और इसलिए कि
इसने खुद ही खुद को बनाया है
इसने खुद ही खुद को बचाया है
दुनिया की जहरीली नजरों।
