उजाला
उजाला
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दो बाल्टी
चार बाल्टी
दस बाल्टी,दो ड्रम दस ड्रम,
दो खेत, चार खेत, दस खेत,
क्या खान-पान क्या साफ- सफाई,
जितना चाहा, जब चाहा जिसने चाहा,
खाली करता रहा,जब तक जिन्दा रहा सोता।
भरा रहा जल,
सब की आशाएं होती रहीं पूरी
तब तक आती रहीं सुहागिनें,
ढोल बजातीं गीत गातीं,
अक्षत चावल हल्दी ऐपन लगाने।
पवित्र होने,
अब तो कचरा फेंकते हुए उनकी चूड़ियों की झंकार सुनता हूँ।
बच्चों को डराते सुनता हूँ,
अरे! उधर मत जानाष्
वहाँ भूत रहता है।
अंधेरा बेपनाह दीवाली की रात,
यह किसके पायल की रुनझुन है?
यह कौन चली आ रही है?
चूड़ियों भरी कलाइयों पर दीप साधे, मेंहदी भरी हथेलियों पर थाल लिए
सूखे अंध्ेारे कुएँ की जगत पर उजाला करने।
