अंतिम पल की व्यथा
अंतिम पल की व्यथा
मुझे अचानक से क्या होने लगा है
ओस की बून्द कानों में गूंज रही है
सारे आसमान में छितराये अंधकार
हृदय के एकांत को ढक रही है
मन के कोने में कहीं एक आवाज
चीख दे बड़ी ही तीव्र रो रही है
मेरे स्वास भी मंद होती गयी है
शरीर के हलचल कहीं खो रही है
आँखों पर न जाने कहाँ से वही
पुरानी याद से दृश्य छा रही है
हर वो पल भयंकर पाप कल की
अचानक यादों को ढक रही है
शायद रिश्तेदारों की भीड़ लगी है
पर सब आज अनजान लग रही है
घरवाले जोर जोर से रो रहे हैं शायद
मुझे उनकी फिक्र भी नहीं हो रही है!