डरावना सच इस जमाने का
डरावना सच इस जमाने का
एक निशान जो रह गया दिल पर उसे कैसे मिटाऊं मैं,
इतना कुछ डरावना सह गई उसे कैसे भुलाऊं मैं।
पति ने जब की मनमानी थी
मैंने उस घर को छोड़ने की ठानी थी।
पर मां बाबा को "अब क्या होगा" मेरा ये चिन्ता सताई थी।
वापिस भेज दिया था उन्होंने मुझे उसी कैदखाने में,
मेरा मायके में अब कोई ठिकाना नहीं मैंने ये बात भी जानी थी।
फिर किया खुद पर भरोसा उस राक्षस से अकेले ही भिड़ गई,
तू होगा सर्व गुण संपन्न पुरुष पर मैं भी काली से कम नहीं
ये बात उसके भेजे में अच्छे से बिठाई थी।
हिम्मत से मेरी वो तो डर गया,
पर इस जमाने का डरावना सच मेरे दिल पर रह गया,
बुरे समय में हर अपना साथ छोड़ देता है,
फिर खुद पर खुद का भरोसा ही उस जख्म का मरहम होता है।