चाँद महबूब
चाँद महबूब
मुझे उसकी आवारगी पसंद है
उसे मेरी दीवानगी,
वो भटकता है रात भर
और मैं तकता उसे,
उसके मुरीद है कितने ही
मैं भी उनमें से एक
किसी की नीयत से बेखबर नहीं
कौन आशिक है कौन दिलफेंक
अपने हुस्न की रोशनी से
सबको नहला देता है
जो रोशन हो उसे रोशन
जो जले उसे जला देता है
किसकी फिक्र है उसे
उसका है अलग ही उन्माद
अपनी मर्जी से आता जाता है
बड़ा शरारती है "बैरी चाँद"।