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Amjad Raza

Romance

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Amjad Raza

Romance

चाँद क्यूँ ख़फा है मुझसे

चाँद क्यूँ ख़फा है मुझसे

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कभी तेरे चेहरे को कभी चांद को तकता रहा,

ये तमाशा देख चाँद आसमान पे भड़कता रहा।


फिर हार के ये खबर भेजी जुगनुओं से,

मुझे भी कुछ यूँ देखो जैसे,

अपने महबूब को देख तू बहकता रहा।


फिज़ा में फूल हैं हर किस्म के ये पता है मुझे,

पर ना जाने क्यूँ मैं दूर रहकर भी तुझ सा महकता रहा।


तूने याद किया था शाम ढलने पे कुछ पल के लिए,

ना जाने फिर मैं क्यूँ तेरी याद में रात भर तड़पता था।


अब लोग मुझ पे बहुत ऐतबार करने लगे हैं,

और तू रेहगुजर होके भी मुझे अब तक परखता रहा।


अब समझ आया कि चाँद था खफा क्यूँ मुझसे,

मुझ जैसा वह भी दिन भर था प्यार में तपता रहा।।


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