कुछ है जो तुम मुझसे छुपा रही
कुछ है जो तुम मुझसे छुपा रही
शायद कुछ है जो,
तुम मुझसे छुपा रही,
अल्फ़ाज़ ज़ुबान पे है,
फिर भी उन्हें बहका रही।
शायद तुम्हें ये एहसास है,
कि तुम मेरे कितने करीब हो,
इसलिए तुम मेरे ख्यालों में,
रहके भी दूर जा रही।
तेरी खातिर तो मैंने खुद को,
यूँ बदल दिया है ज़ालिम,
कि लगता है खुद के जिस्म से,
साया भी जुदा हो रही।
अब तो मैंने गमों में भी,
मुस्कुराना सीख लिया,
और एक तू है की,
गमों पे गम दिए जा रही।
शायद कुछ है जो,
तुम मुझसे छुपा रही।
तू तब भी खास थी,
और अब भी खास है,
तू तब भी पास थी,
और अब भी पास है,
फर्क बस इतना है कि,
ख्यालों तक रह जाए रही।
उम्मीद है कि शायद तू भी,
कभी समझेगी मेरी एहमियत,
बस यही दुआ माँगते हुए,
ज़ुबान भी लड़खड़ा रही।
तेरी खातिर तो,
छोड़ दी है मैंने बंदगी भी,
और तू कहती है,
काफिर में मेरी खैर नहीं।
अब तो लगता है कि,
खुदा भी है खफा मुझसे,
शायद इसलिए हर भेजी,
दुआ लौट के अब आ रही।
शायद कुछ है जो,
तुम मुझसे छुपा रही।