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क्या तू भूल गई

क्या तू भूल गई

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क्या तू भूल गई वह हर लम्हा जो मेरे संग बीताई थी,

रात गुफ्तगू में गुज़ार के सुबह कितना पछताई थी।


वो तेरे चेहरे पे नींद की झपकी थी जो तू मुझसे छुपा ना पाई थी,

पर जब तेरे दिल को टटोला तो दिल ही दिल तू भी मुस्कुराई थी।


तेरे संग गुजारा हर लम्हा मुझे अब भी याद है,

जो तू साथ चलते हुए मेरा हाथ थाम लेती थी,


जब मैं नाराज़ रहता तो बड़े प्यार से मेरा नाम लेती थी,

जब मैं नींद में होता तो तू मेरे माथे को चूम लेती थी,

तू उससे भी इतना प्यार करने लगी या सिर्फ मुझे ही करती थी।


अब ना वह रात है ना वह बात है पर दूर हो के भी तू साथ है,

हैं थामने वाले बहुत से पर अब भी इन हाथों में बस तेरा हाथ है।


जब से तुझे है खो दिया तो अब कुछ नहीं है पाने को,

जो डोर थी हमें बांधे हुए उसे भी अब टूट जाने दो।


जो आँख भर गई कभी तो आंसुओं को लबों तक आने दो,

जो अंधेरे से तू डर जाए तो खुद को उसकी बाहों में समाने दो,

मुझसे ना रहा अब तो ना सही उससे तो इश्क़ हो जाने दो।


अब कभी तो तुझसे ज़िन्दगी के किसी मोड़ पे मिल जाऊँगा,

तुझे फिर से प्यार होगा मुझसे पर मैं तुझे छोड़ जाऊँगा।


जो हवाएं तुझे छुके आएंगी उसका रुख भी मोड़ जाऊँगा,

चाहे ख़ुदा ने ही बनाया हो पर तुझसे हर रिश्ता तोड़ जाऊँगा,

तुझसे हर नाता तोड़ के खुद को तेरी यादों में जोड़ जाऊँगा।


अब चाहे तू भूल जा वो हर लम्हा जो तू मेरे संग बीतायी थी,

पर जो लम्हा मैं तेरे संग बिताया हूँ वह तू कभी ना भूल पाएगी।


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