हमसफ़र
हमसफ़र
मेरे रूबरू तू रहा मगर दिल के करीब तू हुआ नहीं,
तू हुआ ज़माने भर का पर तू मेरा कभी हुआ नहीं।
तू टूट के बिखर गया तब मैंने संभाला तुझे,
अब जो मैं इश्क़ के सफर में हूं तो तू हमसफ़र हुआ नहीं।
इश्क़ करने वाले और भी हैं ज़माने में बहुत,
पर जो तू मेरा हुआ नहीं तो मै किसी का हुआ नहीं।
बंदगी के राह पर चलता रहा मैं उम्र भर,
पर जो इश्क़ का हुआ नहीं वह मेरा ख़ुदा हुआ नहीं।
ख्वाब में तुझे आने की इजाज़त भी दूं तो किस लिए,
जो मैं ख़्वाब देखता रहा वह हकीकत कभी हुआ नहीं।
ऐसा नहीं कि इश्क़ करने का हुनर तुझे आता नहीं,
कुरबत में मेरे तू रहा मगर हमदम कभी हुआ नहीं।
