बस इतनी सी बात थी
बस इतनी सी बात थी
बस इतनी सी बात थी
लगता है उसका कन्या जन्म,
लेना गुनाह हो गया।
उस पर उसका सुन्दर होना
किसी को खल गया।
थी मात - पिता की जान,
वह इकलौती संतान।
उनकी वह दुनिया थी,
था उसकी हंसी से घर रोशन।
एक वहशी से ये सहा न गया,
प्रेम के नाटक का जाल उसने बिछाया,
उसके सपने मात-पिता की सेवा और कुछ बनने के थे,
उसका उस प्रेम प्रणय के जाल में न आना,
उसका काल बन गया।
एक जलता जल वह वहशी,
उस पर फेंक गया।
ज्यों ही उसका पुरुषत्व,
होने का अहम ख़ल गया।
उसका चीत्कार असहनीय थी,
वह पीड़ा वह करुण पुकार,
बस बात इतनी सी थी,
शायद सच में उसका कन्या जन्म,
लेना गुनाह था।
उस पर उसका सौंदर्य,
किसी को खल गया था।
बस बात इतनी सी होती हैं,
पर किसी की दुनिया ही,
तबाह होती है,
बस बात इतनी सी ..........