बंदिशें
बंदिशें
हर मोड़ पे एक ठिकाना है
तुझ से वास्ता कुछ इस तरह है
लाईलाज हो गयी है दुआएँ भी
बिखरे कुछ इस तरह हैं हम ही
न जाने कैसे समेट ले उन पल को
जो बहकर आँसू तले भीग गये हैं
फिजाये फितरत पर उतारू हैं
हमे अपना आशियाना भी तो बचाना हैं
तूफान उल्फत बन के पनप रहा हैं
सवारे जिंदगी को किसके सहारे अब
हम तो उस दरिया का पानी हैं
जो अब सूखा बन पड़ा हैं
न जाने क्यों इतना खल रही बंदिशें
कभी इन्ही के वास्ते हुए थे बेगाने
एक जान ही क्यों छोड़ी ये दिल
सब कुछ तो ले लिया तूने ......
अब न तो सब्र हैं न ही बेचैनी
न ही खलीश ना ही तसल्ली हैं
दिल को संभाले भी तो कैसे
तेरे बिना जिये भी तो कैसे
नही होती हैं अब पलकें नम
नहीं होता अब कोई भी दर्द
टूटकर बिखरे डाली को अब
फिर से जोड़े भी तो कैसे हम
सफर यही तक था मान ले भी हम
यह जो आँखो से बह रहे सपने हैं
चल जो हुआ सही हुआ..
अब दर्द का एहसास ही नहीं रहा ..