मंजिले दगा कर गयी
मंजिले दगा कर गयी


करीब ही थी मंजिल जरा सी
चंद सांसे कुछ दगा कर गयीं ।
उस पार तलक थी साथ जरासी
जीने की वजह दगा कर गयी ।
निगाह मे समाये असमान को
वो सपने जब दगा कर गयी ।
बता किस दौर से गुजर रही वो
उस पनाह से छाव दगा कर गयी ।
बारिशों के मौसम मे तडपती जो
प
लको तले बसीं आह दगा कर गयी ।
ओस की नन्हीं बूंद बनकर आयी जो
वो बरसात की आँधी दगा कर गयी ।
बेगुनाह अल्फ़ाज सता रहे यूही
वो हर अरमान से दगा कर गयी ।
वो भीगी रात अर्दास कह रही
जिंदगी से उम्र कुछ खफा हो गयी ।
तोहम्मते लाख लगायी गयी जो
जिंदगी के इरादे कुछ दगा कर गयी ।