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sarika k Aiwale

Abstract

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sarika k Aiwale

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महर

महर

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दिल से दुआ भी कुछ काम आ जाये 

महर मे भी किसी की मेरा नाम आये 

लकीरें तो इतनी बेजुबा कैसे हो जाये 

बहार भी नस्ल से जैसे रिश्ता दिखाये 


 बता इस बहाने को क्या नाम दिया जाये 

जहाँ में बस दर्द से ही वास्ता रखा जाये


बेदर्द होगी वो ख्वाबों की राह शायद 

उम्मीदों का वादा भी इस तरह तोडा जाये 


कदर भी दो गज दरी बनाये हो जैसे 

बेनामी की वजह कोई तो समझ आये 


चल बेजुबान हो ले ये दिल कभी भी 

रुमानी इन हवा में कही पता दिल का न बदल जाये।


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