शब्द बेजुबान ठहरा
शब्द बेजुबान ठहरा
पनोपानी ने जो कहानियाँ लिखीं
आपके दर्द की बयां गाथा कह रही
पता दे रही बता वो भावना भी
वही बहरापन सारा भावुकता बता रही
दूरी भी यहाँ कम ही तय होती रही
भय भी कहीं सुख की ओर ले जाये कभी
जहां विचार ने कंपन किया स्वर थामे रही
बिना शब्दों के जान ले कोई अपेक्षा जीने न दे कही
पढ़े लिखे जो शब्द थे न्याय के
अन्याय से हमेशा खामोशी बयां रही
कोमल भाव की यहाँ अंकुरे ना जड़ कहीं
विचार भी स्वतंत्रता से ना जीये जा रही
शब्द को बेजुबान होते हुये भी देखा यहाँ
चुभ रही जो बेजुबान निगाह कसक भी पुछ रही
बुद्धिमान कहलाया जो
पिछड़ो से क्यों मिल गाया
पढ़े गए शब्द बुद्धिमत्ता के लेकिन मूर्ख कहलाये
मौन भावना का ब्रश उठा लिये हाथ में
जो छिड़का दिये नभ की और यूं ही
मेघा की मन को जो गहरा घाव दिया कोई
खामोशी बने बरसात बुंदे बरसा रही ..
बोले बिना न समझा न समझे कभी
रोज की दिनचर्या रोज की रात गहरी
सुखी बंजर जमीन पर दीन वह सती यहाँ
निगाहों में बयां हो रहा सवालिया खेल कही
भाव जीने का जो नजर को भा गया
मौत का मुकाम वही पर डेरा डाल दिया
शब्दों शब्दों में बयां हो रही गयी दास्तानिया
भाव भोला सा वही बेजुबान क्यों ठहरा।