आरजू ए कशिश
आरजू ए कशिश


बस इस पार है आह ए जिंदगी
बेबसी तो मौत को भी खले है
बडे बेपर्वाह है राह ए जिंदगी
शौकिन ए मिजाज तो मौत को तरसे है ..
खलीश मजल दर मजल बढ रही जो
बारिश ए असुओंकी क्या कमी है
गुंज रही हर दिलमे धडकन बनके जो
निगाह ए गुनाह जाने तोहमते लागाये है...
खामोशिया बया कर रही है जो
दिल की दास्तान युही शोर ए मगलूल हो रही है..
शाम यूँ ही नहीं तड़प रही जो
इस तन्हा दिल की आरजू ए कशिश है।