बिखरी यादें
बिखरी यादें
आखिर कब तक समेटता रहूँ मैं बिखरी यादों को,
चाहकर भी तो भुला नहीं पाता, तुम्हारी बातों को,
हार गई है मोहब्बत मेरी तुम्हारी बेवफ़ाई के आगे,
फिर भी दिल में सहेजा है मैंने उन मुलाकातों को।
परवाह न की दुनिया की, साथ तुम्हारे चल दिया,
तेरे हाथों को जब थामा, लगा सब कुछ पा लिया,
पर किसे पता था इस तस्वीर का हर रंग ही झूठा,
भ्रम था इन आँखों का, जो पल भर में उतर गया।
उस बेरंग तस्वीर से ज़ख्मी हुआ जो मेरा किरदार,
सुध ही कहाँ उसे, कितना बिखर गया मेरा संसार,
चुन ली उसने राह कोई और पलटकर भी न देखा,
कि मोहब्बत में बेसब्री से कोई कर रहा है इंतजार।
जब दो कदम साथ चलना नहीं है क्यों किया वादा,
क्या बेवफ़ाई करने का, तुम्हारा पहले से था इरादा,
दिखावा था क्या दिल की दहलीज़ पर दस्तक देना,
खुश रहो अपनी दुनिया में, क्या कहें इससे ज़्यादा।