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शिवांश पाराशर "राही"

Abstract Romance

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शिवांश पाराशर "राही"

Abstract Romance

"मैं तो इंतजार कर ही रहा था"

"मैं तो इंतजार कर ही रहा था"

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मैं तो इंतज़ार कर ही रहा था,

तुम्हारे उन शब्दों के बाद,

कि तुम वहीं रहना पटना कॉलेज के गेट पर,

मैं आती हूँ।

मैं तो इंतज़ार कर ही रहा था,

तुम्हारे उन शब्दों के बाद,

कि मैं लाल कुर्ती में आती हूँ।


मैं तो इंतज़ार कर ही रहा था,

तुम्हारे उन शब्दों के बाद,

कि तुम काले रंग की कमीज में आना।

मैं तो इंतज़ार कर ही रहा था,

तुम्हारे उन शब्दों के बाद,

कि मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ।


मैं तो इंतज़ार कर ही रहा था,

तेरे उन सारी बातों के बाद,

जिसे तुम फिर दुहराती,

मुझसे मिलने के बाद।

मैं तो इंतज़ार कर ही रहा था

कि तुम आओगी, 

आगोश में लेकर मुझे,

मेरी रूह से मिलवाओगी।


पर तुम नहीं आई,

इंतज़ार की हद हो गयी,

दिल कहता तुम आओगी,

दिमाग कहता ना,

अब वो ना आएगी।


सुबह से दोपहर,

दोपहर से शाम,

अब तो रात हो गयी,

मैं तो इंतज़ार कर ही रहा था,

फिर ना जाने क्या बात हो गयी ?

रात भर खुली आँखों से सोया,

तुझको देखने तेरे ही घर आया,

मुझे परेशान कर तू,

यहाँ चैन की नींद सो

रही थी,

चल अब उठ,


देख मैं काली कमीज़ में आया हूँ,

आगोश में भर ले मुझे,

तम्हारा व्रत तोड़ने मैं तीज में आया हूँ।

मैं तुम्हें दिखाने के लिए,

तैयार होकर आया हूँ,

पर तुमने ये कैसा श्रृंगार कर रखा है ?


भला कानों में कनवाली,

नाकों में नकवाली,

के जगह रुई कौन लगाता है ?

और जब आशिक खड़ा हो पास में,

तो ऐसे मूँह कौन बनाता है?

मैं यहाँ खड़ा हूँ,

पर तुम बोल क्यों नहीं रहीं ?

इतने बकबक के बाद भी ?


कहीं तुम भी औरों की तरह,

बेवफा तो नहीं हो गयी,

मुझे छोड़ इस दुनिया से 

दफ़ा तो नही हो गयी,

देखो न कैसे कैसे खयाल आ रहे,

मन में अजीबोगरीब सवाल आ रहे,


लगता है तुम मुझसे फिर नाराज़ हो गई हो,

या शायद बीमार हो गयी हो।

ठीक है मैं जाता हूँ, तुम आना 

जब नाराज़गी..

ये बीमारी दूर हो जाये,


मैं काली कामीज़ में वहीं तुम्हारा, इंतज़ार करूँगा,

तुम लाल कुर्ती में आना।

मैं तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ,

कल भी किया था, 

आज भी,अब भी। 

:-- शिवांश पाराशर "राही"


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