आदत तेरे गुफ्तगू की या तेरे लहजे की है!!
आदत तेरे गुफ्तगू की या तेरे लहजे की है!!
ये आदत तेरे गुप्तगू की या तेरे लहजे की है ,
बेनाम रिश्ते के लिए भी अब दिल धड़कने लगे हैंl
ना तू वाक़िफ ना मै वाक़िफ हूं शख्सियतों से,
ये रूहों की मोहब्बत है शायद जो निभाए जा रहे हैं l
ढूंढ़ते हैं उन लफ्जो को जिनमें भले जिक्र मेरा ना हो,
मगर छिपाकर जिन किरदारों को आप जिए जा रहे हैंl
ये सफर भी कुछ लम्बी हो चली है बेवजह शायद,
इंतजार भी रहता है और कहने से भी डरे जा रहे हैंl
ये मयख्यालि है या कश्मकश है खुद की जहन से,
तेरे लफ्जो से ही मोहब्बत करके जो जिए जा रहे हैंl
महसूस जो हो रही है तेरे दिलो के रंज ए गम ,
हम भी शायद आपके दिल में धड़कते जा रहे हैंl
आज फिर नजर चुराकर निकल जाना इन लफ़्ज़ों से,
ये इश्क़ हैं तेरे दिल ए धड़कन की गूंज भी सुनने लगे हैंl
ये आदत तेरे गुप्तगू की या तेरे लहजे की हैं ,
बेनाम रिश्ते के लिए भी अब दिल धड़कने लगे हैं ll
:- शिवांश पाराशर राही ✍️