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शिवांश पाराशर "राही"

Abstract Inspirational Others

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शिवांश पाराशर "राही"

Abstract Inspirational Others

आज का एक नजारा लिखने चला हूं!!

आज का एक नजारा लिखने चला हूं!!

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आज का एक नज़ारा लिखने चला हूँ,

मैं फ़िर से वही किनारा लिखने चला हूं !!


तस्वीर सारे शहर की नज़रों मे बसाकर,

तब उसको आसमान का तारा लिखने चला हूँ !!


तुम जहां वहां मेरी सांसे मेरी तलब का जाना तय है, 

जैसे कोई जिंदगी का पहाड़ा लिखने चला हूं !!


वो दूर जो सजा है इश्क़ वालो के लिए,

उस गुलशन ए बाग को मेरा तुम्हारा लिखने चला हूँ !!


खा गयी नदी मेरे डाले पत्थर सभी, 

इस इंतज़ार मे खुद को अब बेचारा लिखने चला हूं !!


कटे या ना कटे तेरे मांझे से पतंग मेरी,

मैं तुझको जीता खुद को हारा लिखने चला हूँ !!


ऐसा चमका तेरा बाहिज़ाब चेहेरा खिडकियों से,

मैं उसी मन्ज़र को आखिरी नज़ारा लिखने चला हूं !!


आया जो वक़्त मेरी कीमत-ए-पैरवी पर,

मैं बेरकम से कागज़ पे खुद को तुम्हारा लिखने चला हूँ !!


आज का एक नज़ारा लिखने चला हूं, 

मै फ़िर से वही किनारा लिखने चला हूं...!!


        :- शिवांश पाराशर "राही"✍️

  


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