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Rahul Negi

Romance

4  

Rahul Negi

Romance

फ़िक्र

फ़िक्र

2 mins
228


जब तू है तो क्या फ़िक्र है

तू साथी है, हमदर्द है और हमसफ़र भी,

कभी रूठता सा, कभी मनाता सा

अफ़साना सा भी और हक़ीक़त भी तू है।


लबों पर मुस्कान सा, मेरी तलवारों के मयांन सा

कुछ आम सा मीठा कुछ आँवले के अर्क सा,

आँखों के झुकने का भी तू ही ज़िम्मेदार और उठने का भी

अब तू है क्या ये कैसे समझाएँ ?


परवानों पर चढ़ते इश्क़ जैसा

हवाओं में बहते मुश्क जैसा,

कभी बेपरवाह मस्त अठखेलियाँ करता

कभी मर्द जो इज़्ज़त का दम भरता।


आख़िर क्या है तू कि ज़िंदगी रोशन है

आख़िर क्या है तू जो हर तरफ़ मदहोशी का मौसम है,

क्या तू फ़िल्मों का वो हीरो है जो कसता है बाहों में?

या एक सच्चायी जिसे छूने से कुछ साँसे बढ़ सी जाती हैं मेरी ?


आदत सा है तू कमबख़्त छूटता नहीं

कैसा सपना है ये जो कुछ भी हो टूटता नहीं,

आँखों के रास्ते मुलाक़ात भी करता है

फिर कहता है कितने दिन से मिले नहीं।


ठगी सी रह जाती हूँ तेरी हँसी से हर पल

एक निगाह देखता है और सब लूट ले जाता है,

जादूगर है तू कोई दूर दुनिया का

कहता है पीता नहीं पर साँस टकराने पर सौ सौ घूँट पीता है।


कुछ अल्फ़ाज़ भी शायद बहक से गए हैं

खेल रहे हैं तेरी तरह मुझसे ये भी,

इनका भी हुनर ख़ूब है तेरी तरह

जो कहना चाहती हूँ वो होंठों पे आने नहीं देते।


चल अब समझ भी जा मेरे दिल का हाल

वहीं तो रहता है तू, सब जानता है,

चाहे प्यार कर या आँखें दिखा

तू मेरी जान है यही तो कहता है ना तू ?


तुझसे शुरू और तुझपे ख़त्म

ये ज़िंदगी गिरवी रखी है तेरे पास,

कमाल तो ये है कि मुझे इसे वापस माँगने की चाहत नहीं

ये तेरे पास रहे, तेरे साथ रहे, यही बहुत है जीने के लिए।


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