बेटी
बेटी
सृष्टि के सृजन का द्वार है बेटी
फिर भी क्यों बेहाल है बेटी
हर सुख दुःख में साथ निभाती
फिर भी क्यों बेटे, बेटी पर भारी
माँ का अभिमान और पिता की शान है
क्यों हम भूले वो भी इंसान है
आओ बैठो समझो जरा
ना वो फरिश्ता ना वो देवी
बस तुम जैसी ही
चलती फिरती जान है वो भी
बस थोड़ा सा मान उसे दो
अपने जैसा जान उसे लो।
