आवाज आई है
आवाज आई है
अहद -ए -रफ्ता से लौटकर आवाज आई है
मुसलसल आँखों मे मेरे घनी बदली ये छाई है
तल्ख महलूल अल्फाज़ो से जब अस्बाब जो पूछा मैंने
इतना कहाँ अब तो बची केवल तन्हाई है
यूँ ही आ लोग मुझसे पूछते तुम जानते किसको
कहूँ कैसे यहाँ अपनी पुरानी शनासनाई है
फ़जल हो तुम मोहबत में तेरे अल्फाज कहते है
मगर ये जानता हूँ मैं कि ये केवल तुरपाई है
ख़फ़ा हो न तू मुझसे ये प्रिये फ़ुवाद से कहता
मेरे इस जिश्म की अब भी जाँ तू ही परछाई है
मोहबत दिग्भ्रमित होकर अदावत हो रही अपनी
मैंने ये बात हर लम्हा तुम्हे साथी समझाई है
न तुझसे दूर मैं साथी न मुझसे दूर तुम साथी
कभी भी खुश नही होगी ऋषभ ये ही सच्चाई है।