STORYMIRROR

Atul Vishal

Abstract

3  

Atul Vishal

Abstract

चाहतों की भंवर

चाहतों की भंवर

1 min
283

हसीन वादियों के बीच वो शामें

गुजारिशों की होंगी


महबूब के बाँहों में आराम फरमा

रहे होंगे वो रातें बारिशो की होंगी


सिरहाने बैठ तेरे हुस्न की तारीफ़

कर रहे होंगे वो ज़ाम आख़री होगी 


तुझे अपना सा महसूस कर रहे होंगे

वो बातें अपनों की हो रही होंगी


समंदर के भंवर में हर रोज़ नौका धार रहे होंगे

कि किनारा पहुँचने की प्रयास जारी होंगी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract