Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Atul Vishal

Abstract

4.8  

Atul Vishal

Abstract

मज़बूरी

मज़बूरी

1 min
471


खरी इमारतों के बीच,

औनी पोनी जगहों में जीवन बसर कर रहे,

उन लोगो की कुछ तो मज़बूरी रही होगी ना।


जहा इक तरफ चका चौंध उज्जला हो,

वही दूसरे ओर अँधेरे में रह रहे,

उन बदनसीबों की कुछ तो मज़बूरी रही होगी ना।


जहा इक तरफ ठाठदार जगहों में लज़ीज़ व्यंजन परोस कर ,

वही खुद के लिए दो जून की रूखी सुखी बटोर कर,

जीवन यापन कर रहे,

उस बेबसी की कुछ तो मज़बूरी रही होगी ना।


जहा इक तरफ सामाजिक विशेषाधिकारों से परिपूर्ण,

खैराती खुशियों की सेंध सजे हुए।

तो कही सामाजिक प्रताड़ित हो कर भी,

मुट्ठी भर खुशियों के पल में,

मुस्कुरा कर जी रहे 

उन जिंदादिलों की कुछ तो मज़बूरी रही होगी ना।


सामजिक बनावट की वयांग्ता कहे,

या खुद की रची कोई भूल।

इंसान इंसान में फर्क कर रहे है हम,

है ये हमारी मज़बूर, गरीब सोच।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract