चाँद नींद की आगोश में
चाँद नींद की आगोश में
रात देखा मैंने चाँद को नींद की आगोश में,
खिल रही थी चाँदनी, रहा ना मैं भी होश में।
केश उसके ऐसे थे ज्यों काली रात छाई हो,
लबों की मुस्कान ज्यों मादकता बरसाई हो,
आँखें हैं उसकी ऐसी, इनमें झील समाई हो,
मचल उठा दिल मेरा, हो गया मदहोश मैं।
रात देखा मैंने चाँद को नींद की आगोश में,
खिल रही थी चाँदनी, रहा ना मैं भी होश में।
एक चाँद आसमां में, दूसरा चाँद था यहां,
फैला रहे थे रौशनी, ये दोनों चाँद थे जहां,
मैं बन गया था चकोर, था चाँद पूरे जोश में,
धड़क रहा था दिल मेरा, रहा ना खामोश मैं।
रात देखा मैंने चाँद को नींद की आगोश में,
खिल रही थी चाँदनी, रहा ना मैं भी होश में।