बात का बतंगड़
बात का बतंगड़
आज जब घूम कर वापिस आई मेरी बात मेरे पास
तो वह वह बात नहीं थी जो कही थी मैंने,
उस बात को ना जाने किन किन लोगों ने
कैसे कैसे तोड़ मरोड़ कर एक नया ही रूप दे दिया था,
एक ऐसा रूप जिसे ना तो मैंने उस बात को दिया था
और ना ही मैं ऐसा रूप मेरी बात को देना चाहता था,
और इस तरह मेरी बात बतंगड़ बन गई।