इश्क़ और यादें
इश्क़ और यादें
लिखना इश्क़ को भी कहां आसान होता है,
दिल की कलम से दिल का चालान होता है।
यादें मचलने लगती हैं, झांकती है बाहर को,
मगर दिल के कमरे में, कहां दालान होता है।
निकल आती हैं वो रात को बनकर के स्वप्न,
यादों का भी बाहर आने का अरमान होता है।
भटकती रहती हैं वो रात भर उनकी तलाश में,
मिले कौन, दिल का तो अलग जहान होता है।
सुबह होते ही लगा दी जाती हैं बंदिशें उन पर,
उनको खामोश करने को भी दरबान होता है।
नहीं आओगी तुम दिन में, सताने को मुझको,
अरविन्द के दिल से, जारी ये फरमान होता है।