मैं आदमी बेकार हूं
मैं आदमी बेकार हूं
जो साथ में था छूट गया,
मैं खुद ही खुद को लूट गया
क्या दोष आसमां को दूं
मैं तारा था जो टूट गया
टूटी नौका की पतवार हूं
मैं आदमी बेकार हूं।
मैं साथ न किसी के चल सका
न मैं सपना बनकर पल सका
उलझा दिया उलझनों में मैंने
वो फूल था, नहीं खिल सका
मैं जीते जी एक हार हूं
मैं आदमी बेकार हूं।
वो लोग सच ही कहते हैं
जो दूर मुझसे रहते हैं
ना आना मेरी बातों में
यहां ताश के किले ढहते हैं
मैं झूठों का सरदार हूं
मैं आदमी बेकार हूं।
जो जुड़ गए पछताओगे
तुम खुद के न रह पाओगे
मैं काली स्याह रात हूं
तुम अंधेरे में गुम जाओगे
मैं चादर तार तार हूं
मैं आदमी बेकार हूं।