बाल दिवस...
बाल दिवस...
नन्ही आँखें बड़े सपने
आस पड़ोसी सब लगते थे अपने
सच्चा मन भोली सूरत
करते थे मासुमियत से शरारत भरी हरकत
बचपन था कितना सुहाना
नाना-नानी के घर भी होता था जाना
जब हम बच्चे थे
दादा-दादी से शिक्षाप्रद कहानियाँ सुनते थे
छोटी-छोटी बातों में खुश हो जाते थे
एक रुपए में चाट पकौड़ी खाते थे
संयुक्त परिवार का था जमाना
आता था एक दूजे से प्रेम जताना
हँसते-खेलते बच्चे पल जाते थे
पारिवारिक मूल्य भी समझ पाते थे
परिवार जबसे एकल हुआ है
रिश्तों का महत्व खो गया है
गलियों में मचता था जो शोर
वो भी आजकल गुम हो गया है
देख ये सब अपना बचपन याद आता है
दिल उन सुनहरे दिनों की यादों में खो जाता है।।