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Vivek Mishra

Tragedy

4.0  

Vivek Mishra

Tragedy

बाज़ार

बाज़ार

1 min
449



हर रोज़ यहाँ तैयारी होती है

हर रोज़ यहाँ बाज़ार लगता है


मैं रोज़ बिक जाने को घर से निकलता हूँ


कभी कोई प्यार से खरीद लेता है

कभी कोई आंख दिखा कर काम लेता है

कभी खुद को बिकने में मजा आता है

कभी बेआबरू कर के बेचा जाता है


आसान नहीं हर रोज़ गुस्सा पी जाना

आसान नहीं हर तकलीफ दबा जाना

आसान नहीं हर बार मुस्कुरा देना

आसान नहीं हर रोज़ यहाँ बिक जाना


हर महीने यही खेल होता है

तनख्वाह आती है बिकने के बाद


हर रोज़ यहाँ बाज़ार लगता है

हर रोज़ यहाँ तयारी होती है।


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