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Vivek Mishra

Tragedy

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Vivek Mishra

Tragedy

बाज़ार

बाज़ार

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हर रोज़ यहाँ तैयारी होती है

हर रोज़ यहाँ बाज़ार लगता है


मैं रोज़ बिक जाने को घर से निकलता हूँ


कभी कोई प्यार से खरीद लेता है

कभी कोई आंख दिखा कर काम लेता है

कभी खुद को बिकने में मजा आता है

कभी बेआबरू कर के बेचा जाता है


आसान नहीं हर रोज़ गुस्सा पी जाना

आसान नहीं हर तकलीफ दबा जाना

आसान नहीं हर बार मुस्कुरा देना

आसान नहीं हर रोज़ यहाँ बिक जाना


हर महीने यही खेल होता है

तनख्वाह आती है बिकने के बाद


हर रोज़ यहाँ बाज़ार लगता है

हर रोज़ यहाँ तयारी होती है।


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