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Upama Darshan

Drama

4.6  

Upama Darshan

Drama

अंधभक्ति

अंधभक्ति

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जब तक अज्ञान दूर न होगा,

बाबाओं का धंधा फूले फलेगा,

साधु सा वेश ये धारण करके,

भोली भाली जनता को छलते।


प्रवचन में दक्षता हासिल करके,

ज्ञान की बातें औरों को बताते,

ऐशो आराम के साधन जुटा खुद,

भोग विलास का जीवन बिताते।


छल प्रपंच का ओढ़े आवरण,

जाल है इनका ऐसा फैला,

लाखों अँध भक्तों का रोज,

इनके दर्शन को लगता मेला।


राजनीतिज्ञों से पाते प्रश्रय पैसा,

वोट बैंक का खेल है ऐसा,

व्यभिचार के काम ये करके,

राम के नाम को बदनाम करते।


खेलते हैं ये ऐसा खेल,

कथनी करनी में न कोई मेल,

पैसा ही इनका भगवान,

समझ न पाता यह इंसान।


इक्के दुक्के कुछ आवाज़ उठाते,

जेल के सींखचों तक पहुँचाते,

पर लाखों हैं ऐसे अनुयायी,

सच को झुठला माँगें रिहाई।


अंधभक्ति की ये पराकाष्ठा,

बाबा से विश्वास न उठा,

बाबा को भगवान मानते,

शैतान रूप को न पहचानते।


बलिहारी ऐसी जनता पर,

आँखें जिसकी बंद हैं अब तक,

पूजा करती व्यभिचारी की,

सोई रहेगी आखिर कब तक।


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