खलता है
खलता है
"कभी कभी ना मुड़ना खलता है।
दूर जा के मुड़ने का क्या फायदा
कभी कभी ना जुड़ना भी खलता है।
फिर कभी मिलने का क्या भरोसा।
बंदिशों का मजबूत होना दिमाग तो नहीं
पर दिल कमजोर कर देता है।
एक सीमा में रहना यादों को झकझोर देता है।
कभी चाहते हुए भी ना बोलना अखरता है।
बच्चों सा बेबाक होना सरल बनाता है पर
बड़े होकर ये सरलता भी बंधन बन जाती है क्यूंकि
सरलता से लोगों का जुड़ाव गहरा होता है।
और तब फिर अपना बड़ा होना भी खलता है।"
