अलबेला मन
अलबेला मन
मन के विचार बड़े गजब हैं
सृजन इनका बड़ा अजब है
कभी बिखर ये जाते हैं......
कभी मिलजुल राग सुनाते हैं
कभी ज्ञान की सुंदर राह में जाते
कभी भ्रम-मार्ग की पनाह ये पाते
कभी साधुओं के चरण पकड़ते
कभी माया-मोह में खूब अकड़ते
कभी आत्म संतुष्टि चाहते हैं
कभी जग में त्रुटि पाते हैं
कभी कामुकता से भरते हैं
कभी परोपकारी बन फिरते हैं
कभी ईमान का बोध कराते हैं
कभी दरिंदे बन शोर मचाते हैं
कभी आस्तिक ये बन जाते हैं
कभी अस्त-व्यस्त हो जाते हैं
कभी प्रफुल्लित ये हो जाते हैं
कभी वियोग-अग्नि सुलगाते हैं
कभी उत्साह से भर जाते हैं
कभी ईर्ष्या से घिर जाते हैं
कभी रिश्तों की डोर सजाते हैं
कभी रिश्तों से बोर हो जाते हैं
कभी प्रेम का गुल खिलाते हैं
कभी द्वेष-अनल भड़काते हैं
हमारे मन मस्तिष्क में
ये विचार ही तो हैं साहब,
जो हमें चंद पलों में,
कभी अर्श पर ले जाते हैं, तो
कभी फर्श पर ले आते हैं......।