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tanu jha

Drama

5.0  

tanu jha

Drama

अकथित प्रणय

अकथित प्रणय

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वो बात बयाँ न कर पायी,

जो मन में हिचकोले खाती थी।

उर को मेरे था चैन कहाँ,

आँखें मेरी भर आती थी।


नींद उड़ाई थी जिसने,

उससे ही सोना सीखा था।

वह तस्वीर भी निखार गयी,

जिसका रंग ही फीका था।


जिससे हँसना सीखा था,

उसने ही आज रुलाया है।

जिसको अपना माना था,

उसने ही मुझे भुलाया है।


पूनम की थी चाँद हमेशा,

हर कृष्णा की रात में।

कह देती थी यूँ ही सब कुछ,

उससे बातों-बात में।


पर मैं उससे कह न पाई,

जो भी मुझको कहना था।

क्या पता था जीवन भर,

मुझको इस दुःख को सहना था।


उसके आने से पहले मैं,

खुद में ही थी बिखरी सी।

उसकी दस्तक से ही मानों,

सँवर गयी मैं निखरी सी।


ठंडी-ठंडी हवा भी मुझको,

उसकी याद दिलाती है।

शबनम की बूंदें भी मुझको,

उससे ही मिलवाती है।


तन्हाई में जब भी मैंने,

खुद को ही ठुकराया था।

हाथ बढ़ाकर उसने ही,

मुझे उजियारे में लाया था।


चूड़ी की खन-खन भी मुझको,

उसकी बात बताती है।

मेरे मन की कोयल भी,

उसकी धुन को गाती है।


आँखों में ही बातें करना,

मैंने यूँ ही जान लिया।

जब से उसको जाना है,

मैंने खुद को पहचान लिया।


पर अब कुछ भी बचा नहीं है,

दुनिया को बतलाने को।

जीत-हार में गढ़ने वाले,

रिश्ते को समझाने को।


पर फिर भी उन यादों को,

लेकर मैं अब भी पागल हूँ।

दिखने में हूँ बेहतर,

पर अंदर से अब मैं घायल हूँ।


पर अब मुझको नहीं पड़ी है,

किसी अनजाने की चाहत की।

खुद में ही अब पूरित हूँ मैं,

यही बात है राहत की।


पर कब क्या होने वाला है,

यह मैं कैसे जान सकूँ।

जिंदगी का एक ऐसा पहलू,

जिसकी मैं न बात कहूँ।


पर अब जो भी चल रहा है,

उसको यूँ ही चलने दो।

नासूर बने उन जख्मों को,

धीरे-धीरे अब भरने दो।


बीत गयी हैं रातें कितनी,

बीत गए हैं कितने दिन।

अब तो तन्हाई में जीना,

सीख लिया है उसके बिन।


अब तो तन्हाई में जीना,

सीख लिया है उसके बिन।


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