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tanu jha

Others

5.0  

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कोई अपनी सी

कोई अपनी सी

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जिंदगी की भाग दौड़ में,

हम हो जाते है खुद से ही खफ़ा।

भूल जाते है हम उनको,

जो दिखते है कई दफ़ा।

राहों पर चलते चलते हम ,

कुछ ऐसा जान जाते है।

सफर में इतना रम जाते है ,

की मंज़िल ही भूल जाते है।


नाम से क्या हमको ,

जब दोस्ती यूँ ही मिल जाती है।

लफ्ज़ वो बातें बोल न पाते ,

जो उनकी आँखें कह जाती है।

कतराते है अंजानों से ,

पर पहचान बनाकर क्या मतलब

कोई हमें न बता सका की ,

ख़ुशियाँ कैसे आती है।


रात रात भर जाग रहे थे ,

जानने को खुद के बारे में।

तारे गिन कर समय गंवाया ,

जब थे दूसरों के सहारे में।

पहचाना अजनबियों को ,

तब अपनों को भी जान लिया।

साथ रहे जब तक उनके ,

हमने खुद को भी पहचान लिया।

शायद वो दोबारा मिल न पाए ,

उनकी बातें थी गढ़नी सी।

फिर भी वह ये बता गयी की ,

थी वो कोई अपनी सी।


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