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tanu jha

Romance

5.0  

tanu jha

Romance

पहली बार

पहली बार

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पड़ा हुआ था भरा समंदर,

फिर भी गागर रीती थी।

सामने से मुस्कान दिखाकर,

आँसू के घूँटों को पीती थी।


दिन में था अँधेरा छाया,

रात में कोयल गाती थी।

बाँस बबूल से बातें करके,

मन को मैं बहलाती थी।


जीना तो सीखा जब मैंने,

देखा पहली बार तुझे।

तन में सिहरन दौड़ गयी,

जले वो दीप जो थे बुझे।


रात अमावस भी मुझको,

तब संध्या जैसी लगने लगी।

तेरी चाहत से न जाने क्यों,

इच्छाएँ मेरी बढ़ने लगी।


तेरी बातों से मैंने,

अतुल प्रणय का स्वाद चखा।

तेरी दोस्ती को ही पाकर,

मैंने खुद का इतिहास रचा।


बाँस बबूल से बात करना,

तुमसे मिलकर छोड़ दिया।

एक तेरी ही यारी ने,

आँधी का रुख भी मोड़ दिया।


सूखी पड़ी बंजर भूमि,

नव बसंत अब आया है।

न जाने किसकी रहमत से,

मैंने तुझको पाया है।


चंचल हो गया मन ये मेरा,

खुद पर अंकुश रहा नहीं।

गुलमोहर की खुशबू जैसी,

तेरे जैसा कोई मिला नहीं।


ऐसा पहली बार हुआ है,

पहली बार हुआ एहसास।

पहली बार में जान लिया,

ये दोस्ती है कितनी खास।


पहली पहली बार प्रणय का,

दो दोस्तों का है इतिहास।

तेरी मेरी यारी तो जैसे,

दो जिस्म पर एक हो साँस।


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