मौका मिले तो
मौका मिले तो
नदियाँ जो चाहती हैं,
मैदानों पर बहते रहना
कभी इठलाना कभी ठुमकना,
अपने बहाव में बहते जाना।
खुलकर आनंद उठाना,
पर ऐसा होता कहाँ है उसके साथ
आखिर समंदर में समाहित,
होना ही पड़ता है।
बाधाओं से लड़कर उसको,
बाधा में मिलना ही पड़ता है।
ऐसा ही है जीवन हमारा,
जो चाहते हैं,
उसका विपरीत ही होता है।
जो माँगते हैं,
उससे उल्टा ही मिलता है।
खुलकर जीना चाहें,
तो संकोच पाते हैं,
जीत पाकर ही हम,
खुद में हार जाते हैं।
जिसने हमारा साथ निभाया,
उससे ही दूर जाना पड़ता है।
मन चाहता है कुछ और पर
लब्ज कुछ और ही कहता है।
कभी मौका मिले तो,
आँखें देख कर समझना
कि हम क्या कहना चाहते हैं,
मंजिल पाने की कोशिश में,
हम खुद मिट्टी में मिल जाते हैं।
आँख से बहा एक आँसू भी
समंदर की लहर सा बन जाता है।
पर फिर भी कोई समझ न पाया,
की हमारा दिल क्या चाहता है।
मुसाफिर तो सब बन जाते हैं,
अपने मुक़द्दर के
पर अपनों को गहराई से जानना ,
सिर्फ अपनेपन को ही आता है।
यूँ तो मिल चुके होंगे हम,
आपसे अनजाने में।
पर लग जाता है बहुत समय,
किसी को अपनाने में।
मंजिल को पाना तो वैसे ही,
सपना सभी का होता है,
अनूठापन तो है केवल
उस सफर को चाहने में।।
