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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Tragedy Others

4.9  

राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Tragedy Others

ऐसी बारात देखी न होगी कभी

ऐसी बारात देखी न होगी कभी

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ऐसी बारात देखी न होगी कभी, जिसमें मातम भी था और सौगात भी ।

एक खुशियों का मंडप सजा था मगर, उसमें मौजूद थे घात प्रतिघात भी ।।


इस तरफ दो बदन मिल रहे थे उधर, आत्मा जिस्म से मुक्त होने को थी ।

इस तरफ रात जगती रही जश्न में, उस तरफ जिंदगी नींद सोने को थी ।।


इस तरफ ख्वाहिशें जन्म पाती रहीं, रस्म निभती रही जिंदगी के लिए ।

उस तरफ हसरतों का जनाजा उठा, एक जीवन मिटा बन्दगी के लिए ।।


दो दिलों ने किये जो थे' वादे कभी, आज उनके लिए खौफ की रात थी ।

रौंद करके भरोसा कहीं जश्न था, तो कहीं पर कयामत की' बरसात थी ।।


एक ने सारे वादों को' फूंका उधर, और ख्वाबों की दुनिया में खोता गया ।

एक वादों के सिक्के लिए बेरहम, जिंदगी के थपेड़ों को ढोता गया ।।


एक ने ख्वाब खुशियाँ अदावत चुनी, एक ने प्यार ईमान का घर चुना ।

एक आँखों में पानी लिए रह गया, एक ने ख्वाहिशों का समंदर चुना ।।


फर्क दोनों में इतना रहा दोस्तों, एक जीता रहा और हँसता रहा ।

दूसरा मौत की सेज पर सो गया, जिंदगी की अगन सा सुलगता रहा ।।


एक ने फूल वादों के मसले इधर, और ख्वाबों की जन्नत में खोता गया ।

दूसरा फ़ूल वादों के ले मौत तक, हर कदम टूटता जुड़ता' रोता गया ।।



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