दूरियां और मजबूरियां
दूरियां और मजबूरियां

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कितनी दूरियां रही होंगी कितनी मजबूरियां रही होंगी
कितना बोझ उठाया होगा कितनी ठोकरें खाई होंगी रास्तों में
कितने ख्वाब टूटे होंगे कितनी तनहाईयों से दोस्ती रही होगी
कितने इम्तिहानो का सामना हुआ होगा कितनी ख्वाहिशों ने आखिरी सांस ली होगी
कितनी आजमाइशो से गुजरा होगा कैसी कशमकश रही होगी जेहन में
कितनी मसरूफियत रही होंगी और कितनी शिकायतें होंगी जिंदगी से
अब ना बंदिशें होंगी ना ही पुराने हालात होंगे अब आजादी ही आज़ादी होगी।