वो रोज उसे नोचता - खरोंचता ,
और कहता उसे प्यार ...
वो थकने लगती उसकी वासना से ,
और चले जाने को कहती हर बार |
उसकी भूखी निगाहों से अब ,
डर लगता है उसे बार - बार ,
ऐसा लगता मानो ये जीवन उसका ,
यूँ ही चला जायेगा बेकार |
उसके पास ऐसा करने का ,
पूरा - पूरा जो है अधिकार ,
वो ब्याहता है उसकी अब ,
तो करे भी तो कैसे करे इंकार |
कभी - कभी वो सोचा करती ,
भाग जाए कहीं छोड़ ये संसार ,
मगर ठिठक जाते कदम ये सोच ,
बाहर का होगा और बुरा संसार |
धीरे - धीरे वो मरने लगी ,
सहते - सहते रोज का बलात्कार ,
घरेलू हिंसा से भी ज्यादा भयानक था ,
वो हर पल का मानसिक अत्याचार |
वासना भले ही एक जरुरत हो ,
मगर जरुरत से ज्यादा है बेकार ,
असली प्यार उसी को कहेंगे जिसमे ,
स्त्री भी मर - मिटने को हो तैयार ||